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Description
The book contains 51 proverbs, reading which even a child might wonder that from where such proverbs actually originated. The interesting and entertaining stories of their origin are penned down in this book.
Sujets
Informations
Publié par | V & S Publishers |
Date de parution | 22 septembre 2011 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789352151066 |
Langue | Hindi |
Poids de l'ouvrage | 1 Mo |
Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
इस पुस्तक में क्या-क्या है-------------- आपके ज्ञान और मनोरंजन के साथ-साथ भाषा के संस्कार को निखारने का आयोजन है। सैकड़ों में से ऐसी 51 कहावतों का चुनाव, जिनका इस्तेमाल या तो प्राय: आप करते हैं या दूसरों से सुनते हैं। इन कहावतों से जुड़ी हुईं ये रोचक कहानियां ऐसी हैं, जो देश-काल की सीमाएं लांघकर बरसों-बरस से आपको भावविभोर करती रही हैं। जब कभी आप बोलते हैं या कहीं भाषण देते हैं अथवा कभी कुछ लिखने बैठ जाते हैं, तो अनायास ही ये कहावतें आपके मानस-पटल पर चली आती हैं और आपके कार्यकलाप को प्रभावशाली तथा मज़बूत बना देती हैं। इसमें दिए गए ढेरों चित्र कहानियों को अधिक मुखर और जीवंत बनाने का प्रयास है।
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डॉ. प्रताप अनम
प्रकाशक
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-814481-8-2
डिस्क्लिमर
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इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
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मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020
कहानी की बात__________________
आ रंभ से ही मानव जीवन के साथ-साथ समाज में विधमान साहित्य, कला, संस्कृति आदि में स्वाभाविक रूप से परिवर्तन होता आया है। उनमें कुछ जुड़ता रहा है, तो कुछ निकाला जाता रहा है। इससे समय के साथ लोक साहित्य का स्वरूप भी बदलता रहा है। अगर हम लोक गीतों को ही देखें, तो भाषा, प्रतीक आदि तत्त्वों के परिवर्तन के साथ लोक गीत आगे बढ़ते रहे हैं। समय-समय पर तत्कालीन लोक गायक उनमें से कुछ निकालते रहे हैं, तो कुछ जोड़ते रहे हैं; जैसे आरंभ में लोक गीतों में वाहन के रूप में घोड़ा, रथ आदि का प्रयोग होता रहा है । बाद में वे समय-समय पर घोड़ा, रथ आदि के स्थान पर बैलगाड़ी, मोटर, बस, कार, रेल, हवाई जहाज का प्रयोग करने लगे । खाने-पीने की वस्तुओं, वस्त्र, आचार--विचार आदि में भी परिवर्तन होता रहा है। इस प्रकार लोक गीतों में नया-नया जुड़ता रहा और पुराना-पुराना निकलता रहा ।
लोक गीतों की तरह ही लोक साहित्य में कहावतें, लोक कथाएं, मुहावरे समाज में प्रचलित हैं। लोक गायकों की तरह ही कहावतों को कहने वाले अपनी स्थानीय विशेषताओं; जैसे- नाम, स्थान, धंधे, प्रकृति आदि के अनुसार कहावतों में परिवर्तन करते आएं हैं। इसी कारण किसी-किसी कहावत के एक से अधिक रूप और कथाएं मिलती हैं, लेकिन कहावत का मूल आशय एक ही रहा है, जो कभी बदला नहीं।
कहावतों के बारे में यह निश्चित नहीं कहा जा सकता कि एक कहावत किसी समय में अमुक व्यक्ति ने बनाई या कही, या कोई कहावत बनने का कारण अमुक रहा, या किसी कहावत की कहानी, कथा या वृत्तांत अमुक है। कुछ कहावतें ऐसी अवश्य हैं, जिनमें ऐतिहासिक घटनाओं तथा पात्रों का उल्लेख मिलता है, लेकिन वे घटनाएं कहावतें कब बनीं, इसके प्रामाणिक आधार नहीं मिलते हैं। फिर भी कुछ मुहावरों का समय आदि यह कहकर निश्चित कर लेते हैं कि उस समय अमुक पात्र ने यह बात कही थी।
इन कहावतों की कहानियों के मूल स्रोतों तक पहुंचने के लिए अनेक ग्रंथों का अवलोकन किया। अनेक लोगों से मुलाकातें कीं। अपने यायावरी जीवन का अनुभव भी रहा। जो भी कथा के सूत्र मिले और जो सूत्र संभावित हो सेकत थे, उन्हीं को लेकर इन कहावतों की कहानियों का सृजन कीया है। कहावतों के अनुसार कहानियों का लोक पक्ष कितना मुखर हो सका है तथा लोकजीवन में कितनी रची-बसी हैं, यह आप पढ़कर ही जान सकेंगे ।
1271, गली संगतराशान, पहाड़गंज, नई दिल्ली-110055
-डॉ. प्रताप अनम
अंदर के पृष्ठों में
1. कबीरा तू कबसे वैरागी?
2. तिरिया से राज छिपे न छिपाए
3. दीन से बेदीन भए, गंग नीर पिए से
4. माया तेरे तीन नाम : परसा, परसु, परसुराम
5. भागते चोर की लंगोटी ही सही
6. देखना है, ऊंट किस करवट बैठता है
7. आप हारे, बहू को मारे
8. बोले सो कुंडी खोले
9. चोर की दाढ़ी में तिनक
10. जैसे को तैसा
11. चार लट्ठ के चौधरी, पांच लट्ठ के पंच
12. अपने किए का क्या इलाज
13. जैसा करे वैसा पावे, पूत-भतार के आगे आवे
14. सीख ताको दीजिए, जाको सीख सुहाय
15. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी
16. जब रखोगे, तभी तो उठाओगे
17. बिच्छु तो डंक मारता ही है
18. जो कुआं खोदता है, वही गिरता है
19. जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे
20. अंगूर खट्टे हैं
21. ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है
22. जिसको न दे मौला, उसको क्या देगा आसफउद्दौला
23. मार से तो भूत भी भागता है
24. गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है
25. शेर का डर नहीं, जितना टपके का
26. अढ़ाई दिन की बादशाहत
27. तेते पांव पसारिए, जेती लांबी सौर
28. आब-आब कर मर गए, रहा सिरहाने पानी
29. या अल्लाह, गौड़ में भी गौड़
30. अंधों का हाथी
31. अंधी पीसे, कुत्ता खाए
32. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियां चुग गईं खेत
33. धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का
34. थोथा चना, बाजे घना
35. बगल मेंलड़का, शहर में ढिंढोरा
36. लालच बुरी बला है
37. नाच न जाने, आंगन टेढ़ा
38. एक तो करेला, दूसरा नीम चढ़ा
39. गरीब की जोरू, सबकी भाभी
40. अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम
41. छाती का जामुन, मेरे मुंह में डाल दो
42. घर का आया नाग न पूजें, बांबी पूजन जाएं
43. जो हल जाते खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी
44. बीरबल की खिचड़ी
45. मन चंगा, तो कठौती में गंगा
46. जिसकी लाठी, उसकी भैंस
47. अंधेर नगरी, चौपट राजा
48. एक से बढ़कर एक
49. जान बची, लाखों पाए
50. निन्यानवे का फेर
51. गोबर बादशाह का कमाल है
कबीरा तू कबसे वैरागी?
ए क बार गुरु रामानंद और उनके अनेक शिष्य किसी खास बात पर चर्चा कर रहे थे। उन दिनों शोर था कि शंकराचार्य शास्त्रार्थ में सबको हराते हुए काशी की ओर बढ़ते आ रहे हैं और अब काशी में उनका किस तरह से सामना किया जा सकता है? वहीं पर कबीर भी चुपचाप बैठे थे पर वे एक शब्द भी नहीं बोले। सबकी बातों को कबीर चुपचाप सुनते रहे।
रामानंद उठकर जैसे ही गए, सब शिष्य अपना-अपना काम करने में लग गए। कबीर तथा कुछ शिष्य बैठे रहे। इतने में किसी ने सूचना दी कि शंकराचार्य रामानंद को पूछते हुए इधर ही चले आ रहे हैं। कबीर आश्रम के बाहर आकर बैठ गए।
थोड़ी देर बाद कबीर देखते हैं कि शंकराचार्य डंड-कमंडल लिए अपने शिष्यों के साथ चले आ रहे हैं। शंकराचार्य ने पास आते ही कबीर से रामानंद के बारे में पूछा। कबीर ने उन्हें ठहरने के लिए जगह दी। प्रात:काल का समय था। कबीर ने शंकराचार्य से कहा, “आप तब तक स्नानादि से निवृत्त हो जाइए। रामानंद कहीं गए हैं। अब आते ही होंगे।“
शंकराचार्य शौच के लिए तैयार हुए, तो कबीर से पूछा कि शौच के लिए किधर जाना है? कबीर ने थोड़ी दूर जाकर कहा, "उधर जंगल है, कहीं भी कर लेना।"
शंकराचार्य अपना कमंडल लिए जंगल की ओर बढ़ गए। थोड़ा फासला रखकर और आंख बचाते हुए कबीर भी उनके पीछे-पीछे चल दिए। कबीर ने देखा कि शंकराचार्य एक झाड़ी की आड़ में बैठकर शौच करने लगे। कबीर ने थोड़ी दूर खड़े होकर कहा, "राम, राम।" इतना सुनते ही शंकराचार्य मुँह दूसरी ओर करके बैठ गए। कबीर फिर घूमकर सामने पहुंचकर कहने लगे, "राम, राम।" शंकराचार्य फिर मुँह फेरकर बैठ गए। कबीर चुपचाप आश्रम लौट आए।
शंकराचार्य ने शौच के बाद गंगास्नान किया, पूजा-पाठ आदि की, तब निश्चिंत होकर लौटे। शंकराचार्य कबीर से बहुत नाराज थे। आते ही कबीर पर बरस पड़े। कहने लगे, "तुम बिल्कुल अशिष्ट हो। अज्ञानी हो। तुमको इतना भी ज्ञान नहीं कि शौच करते समय अशुद्धावस्था में होते हैं और उस समय यदि बोलता, तो राम नाम भी अशुद्ध हो जाता।"
कबीर और शंकराचार्य की अवाजें सुनकर रामानंद के अन्य शिष्य भी वहां आ गए। शंकराचार्य की बात सुनकर कबीर बोले, "आप कह रहे हैं कि अशुद्ध पहले ही थे, फिर आप शुद्ध कैसे हुए?" शंकराचार्य को कबीर की बात बड़ी अटपटी लगी। शंकराचार्य ने कहा, "शुद्ध कैसे हुए! गंगास्नान करके और कैसे?"
कबीर ने फिर कहा, "आप तो शुद्ध हो गए, लेकिन गंगा का पानी अशुद्ध हो गया। उसमें जो भी स्नान करेंगे, सब अशुद्ध हो जाएंगे।"
शंकराचार्य कबीर को तीव्र बुद्धिवाला समझकर उत्तर देने लगे, "गंगा का पानी तो वायु के स्पर्श से शुद्ध हो गया।"
इस पर कबीर ने पूछा, "तब तो वायु दूषित हो गई। अब वायु का क्या होगा?" शंकराचार्य ने फिर उत्तर दिया, "अरे नासमझ, उस वायु को यज्ञ से पवित्र किया।" कबीर बड़े प्रखर बुद्धि के साधक थे। फिर शंकराचार्य से उन्होंने एक प्रश्न कर दिया, "तब तो यज्ञ अशुद्ध हो गया। यह तो बहुत बुरा हुआ।"
शंकराचार्य ने कहा, "बुरा क्या हुआ, यज्ञ को भी मैंने शुद्ध कर दिया।" कबीर बोले, "यज्ञ किस चीज से शुद्ध कर दिया।" शंकराचार्य ने तुरंत उत्तर दिया, "राम नाम से।"
इतना सुनते ही कबीर ने कहा, "यह तो आपने बहुत बुरा किया। आपने राम नाम अशुद्ध कर दिया। हम सब राम का नाम ध्यान करते हैं।"
शंकराचार्य थोड़ा आवेश में आकर बोले, “अरे बच्चे, राम नाम तो कभी अशुद्ध होता ही नहीं। वह तो दूसरों को शुद्ध करता है।"
इतना सुनते ही कबीर बोल पड़े, "फिर शौच करते समय राम नाम कैसे अशुद्ध हो जाता? अभी आप ने कहा कि राम नाम हमेशा शुद्ध रहता है। इससे पहले आप कह रहे थे कि मैं अशुद्धि में था, इसलिए राम नाम नहीं ले सकता था। राम नाम अशुद्ध हो जाएगा।"
इतना कहकर कबीर ने अपने साथियों से कहा, "ले लो इनके डंड-कमंडल। जब ये रामानंद के शिष्य से नहीं जीत पाए, तो उनसे मिलकर क्या करेंगे?" रामानंद के शिष्यों ने शंकराचार्य के डंड-कमंडल ले लिए।
जाते समय शंकराचार्य ने पूछा, "हे रामानंद के श्रेष्ठ शिष्य! क्या अपना नाम बता सकोगे?" इतना कहना था कि कबीर के एक साथी ने कहा, "इनका नाम कबीर है।"
शंकराचार्य ने कबीर को प्रणाम किया और चले गए।
इधर कबीर ने अपने साथियों से कहा कि गुरुजी का पता लगाओ कि वे कहां चले गए? जब उन्हें ढूंढ़ा गया, तो व